दिल्ली विस चुनावः भाजपा का साथ देना अकाली दल की मजबूरी बना, सिर्फ एक वजह से लिया यूटर्न
हरियाणा में दो बार भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली बादल को भारतीय जनता पार्टी का साथ देना मजबूरी बन चुका है। पंजाब में यह तस्वीर साफ हो चुकी है कि सूबे में सरकार शहरी वोटरों के दम पर ही बनती है और शहरी वोटरों में भाजपा का खासा जनाधार है। ऐसे में अकाली दल का भाजपा का साथ छोड़कर पंजाब में सरकार बना पाना नामुमकिन है।
2017 में 117 सीटों के नतीजे और रुझानों में कांग्रेस ने यहां 77 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि अकाली-बीजेपी गठबंधन को महज 18 सीटें हासिल हुई थी। हालांकि पंजाब पर राज करने का सपना संजोये बैठी आम आदमी पार्टी को करारा झटका लगा है। उसे सिर्फ 20 सीटें हासिल हुई थी। पंजाब में एक बात साफ हो गई थी कि शहरी वोटरों ने कांग्रेस की तरफ वोट डाले थे।
अमृतसर सिटी, जालंधर शहर, लुधियाना, पटियाला शहरी हलकों में कांग्रेस की तेज आंधी चली थी। पंजाब में 2007, 2012 में शहरी वोटरों ने शिरोमणि अकाली दल और भाजपा का खुलकर साथ दिया था जिसके दम पर गठबंधन सरकार बनी।
भाजपा के बिना पंजाब में अकाली सरकार बनना मुश्किल
भाजपा अभी तक पंजाब में 23 सीटों पर चुनाव लड़ती आ रही है, जो शहरी हलकों में है। ऐसे में अकाली दल को भाजपा की हर कदम पर सख्त जरूरत है। दिल्ली में गठबंधन टूटने के बाद पंजाब में भी चर्चा शुरू हो गई थी कि 2022 के चुनावों में दोनों का रास्ता अलग-अलग हो सकता है। पंजाब भाजपा भी यह आवाज उठा रही है कि अब बहुत हो चुका। 2022 में हम बड़े भाई की भूमिका में रहेंगे।
अकाली दल दिल्ली में आठ सीट मांग रहा था लेकिन एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद भी भाजपा को समर्थन देना अकाली दल की मजबूरी है क्योंकि पंजाब विधानसभा चुनाव में अब महज दो साल का समय ही बचा है।